एक बेवफा की याद में :कमलेश चौहान

Gyan Darpan
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ए दोस्तो जिंदगी के हादसे कुछ इस तरह् से गुजरे
हर बार दर्द के दरिया मै तिनके की तरह बह गये

वो क्यों बिछड़ गया ईसकी हमें कोई सोच नाही
गिला तो जिंदगी से है जो हज़ारो लम्हो मै बॅट गयी

होगी कोई उसकी मजबूरी जो वो हुमसे बिछड़ गया
होगा शायद मुझी मै कोई दोष जो इस कदर रूठ गया

पहले पहल यू उसने अपनी नजरों मै छुपा लिया
बिठाकर हमें आसमां पे फिर ज़मीन पे गिरा दिया

गिरते है लोग हज़ारो मंज़िलो से हर रोज
कटते है दिल और जिगर खंज़रो से हर रोज

तो क्या हुआ वक्त की तलवार से कटा हमारा सम्मान
लो सुन लो हारी हुई जिंदगी का पैग़ाम

हम तो आसमान से गिरकर खाक ही मै मिल गये
अजीब दास्तान यह हुई तुम हमारी ऩज़रो से ही गिर गये


यह पेगाम उनके लिए है जो नज़रे चुरा कर बदल जाते है और सोचते है कि वो दुनिया भर मै सबसे होशयार है !
यह कविता Los Angeles, CA से कमलेश चौहान ने ज्ञान दर्पण पर प्रकाशित करने हेतु भेजी |


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8टिप्पणियाँ

  1. कविता अच्छी लगी , लेकिन मै तो यह समझता हू कि गिरना तो अपनी ही नजर मे होता है । दूसरों की नजरों मे गिरना भी कोई गिरना हुआ भला । और जो एक बार अपनी नजर मे गिर जाता है वह उठ भी नही पाता है ।

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  2. बहुत सुंदर रचना. कमलेश जी को बहुत धन्यवाद और आपका आभार पढवाने के लिये.

    रामराम.

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  3. पहले पहल यू उसने अपनी नजरों मै छुपा लिया
    बिठाकर हमें आसमां पे फिर ज़मीन पे गिरा दिया

    गिरते है लोग हज़ारो मंज़िलो से हर रोज
    कटते है दिल और जिगर खंज़रो से हर रोज.....बहुत सुंदर लाइनें .

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  4. बहुत ही अच्छी रचना है..!गिरता तो झरना भी है..लेकिन इससे भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है...

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  5. गिरते है लोग हज़ारो मंज़िलो से हर रोज
    कटते है दिल और जिगर खंज़रो से हर रोज
    ... बहुत खूब !!!!!!

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  6. mai sub ka dhanyavad karati hu gyan darpan ka aur aap sub lekhako ka jinahonae meri rachna ko etani gambhrita se dekha. Mai es kabil nahi ki sahitya ki unchi seediya pai ja sakku lakin apane jo utsah badaya uski bahoot shukargujar hu.
    Kamlesh Chauhan
    Email: Kchauhan559@Gmail.com

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