राजिया रा सौरठा - 3

Gyan Darpan
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कवि कृपाराम जी द्वारा लिखित नीति के दोहे
देखै नही कदास, नह्चै कर कुनफ़ौ नफ़ौ |
रोळां रो इकळास, रौळ मचावै राजिया ||

जो लोग हानि-लाभ की और कभी देखते नही,ऐसे विचारहीन लोगों से मेल-मिलाप अंततः उपद्रव ही पैदा करता है |

कूड़ा कुड़ प्रकास, अण हुती मेलै इसी |
उड़ती रहै अकास, रजी न लागै राजिया ||

झूटे लोग ऐसी अघटित बातों का झूटा प्रचार करते है कि वे आकाश में ही उड़ती रहती है | हे राजिया ! धरती की रज तो उन्हें छू भी नही पाती |

उपजावे अनुराग, कोयल मन हरकत करै |
कड्वो लागे काग, रसना रा गुण राजिया ||

कोयल लोगो के मन में प्रेम,अनुराग उत्पन्न कर आनन्दित करती है, जबकि कौवा सब को कड़वा लगता है | हे राजिया ! यह सब वाणी का ही परिणाम है |

भली बुरी री भीत, नह आणै मन में निखद |
निलजी सदा नचीत, रहै सयांणा राजिया ||

नीच व्यक्ति अपने मन में भली और बुरी बातों का तनिक भी भय नही लाते | हे राजिया ! वे निर्ल्लज तो सयाने बने हुए सदैव निश्चिंत रहते है |

ऐस अमल आराम, सुख उछाह भेळ सयण |
होका बिना हगांम, रंग रौ हुवे न राजिया ||

ऐस आराम,अफीम रस की मान मनुहार और मित्र मंडली के साथ आनंद उत्सव के समय हे राजिया ! यदि
हुक्का नही हो,तो मजलिस में रंग नही जमता |

मद विद्या धन मान, ओछा सो उकळै अवट |
आधण रे उनमान , रहैक वीरळा राजिया ||

विद्या, धन और प्रतिष्ठा पाकर ओछे आदमी अभिमान में उछलने लग जाते है | आदहन की भांति मर्यादा में यथावत रहने वाले लोग तो विरले ही होते है |

तुरत बिगाड़े तांह , पर गुण स्वाद स्वरूप नै |
मित्राई पय मांह , रीगल खटाई राजिया ||

जिस प्रकार दूध में खटाई पड़ने पर उसके गुण,स्वाद और स्वरूप में विकृति आ जाती है, उसी प्रकार हे राजिया ! मसखरियों से मन मन फटकर मित्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाती है |

सब देखै संसार, निपट करै गाहक निजर |
जाणै जांणणहार, रतना पारख राजिया ||

यों तो सभी लोग ग्राहक की नजर से वस्तुओ को देखते है किंतु उनके गुण दोषों की पहचान हर एक व्यक्ति नही कर सकता | हे राजिया ! रत्नों की परख तो केवल जौहरी ही कर सकता है |

मूरख टोळ तमांम घसकां राळै अत घणी |
गतराडो गुणग्रांम, रांडोल्या मझ राजिया ||

मूर्खों की मंडली में ही मूढ़ व्यक्ति बहुत अधिक गप्पे हांकता रहता है, जैसे रांडोल्यों में हिजड़ा भी गुणवान समझा जाता है |

हुवै न बुझणहार, जांणै कुण कीमत जठै |
बिन गाहक ब्योपार, रुळयौ गिणैजै राजिया ||

जहाँ पर कोई पूछने वाला भी न हो, वहां उस व्यक्ति या वस्तु का मूल्य कौन जानेगा ? निश्चय ही बिना ग्राहक के व्यापार चौपट हो जाता है | हे राजिया ! इसी तरह गुणग्राहक के बिना गुणवान की कद्र नही हो सकती |

गुणी सपत सुर गाय, कियौ किसब मुरख कनै |
जांणै रुनौ जाय, रन रोही में राजिया ||

गायक ने गीत के सातों स्वरों को गाकर मूर्ख व्यक्ति के सामने अपनी कला का प्रदर्शन किया, किंतु उसे ऐसा लगा,मानो वह सुने जंगल में गाकर रोया हो | (अ-रसिक एवं गुणहीन व्यक्ति के संमुख कला का प्रदर्शन अरण्य रोदन के समान ही होता है )

पय मीठा पाक, जो इमरत सींचीजिए |
उर कड़वाई आक, रंच न मुकै राजिया ||

आक भले ही मीठे दूध अथवा अमृत से सींचा जाय, किंतु वह अपने अन्दर का कड़वापण किंचित भी नही छोड़ता | इसी प्रकार हे राजिया ! कुटिल व्यक्ति के साथ कितना ही मधुर व्यवहार किया जाए वह अपनी कुटिलता नही छोड़ता |

रोटी चरखो राम, इतरौ मुतलब आपरौ |
की डोकरियां कांम, रांम कथा सूं राजिया ||

बूढीयाओं को तो रोटी,चरखा और राम-भजन, केवल इन्ही से सरोकार है ! हे राजिया उन्हें राजनितिक चर्चाओं से भला क्या लेना देना ?

जिण मारग औ जात, भुंडी हो अथवा भली |
बिसनी सूं सौ बात, रह्यो न जावै राजिया ||

व्यसनी पुरूष जिस मार्ग पर चलता है,चाहे वह वस्तु बुरी हो या भली वह किसी भी स्थिति में उसे छोड़ नही सकता,यह सौ बातों की एक बात है |

कारण कटक न कीध, सखरा चाहिजई सुपह |
लंक विकट गढ़ लीध, रींछ बांदरा राजिया ||

युद्ध विजय के लिए बड़ी सेना की अपेक्षा कुशल नेतृत्व ही मुख्य कारण होता है | हे राजिया ! श्रेष्ठ संचालक के कारण लंका जैसे अजेय दुर्ग को रींछ और बंदरों ने ही जीत लिया |

डा. शक्तिदान कविया द्वारा लिखित पुस्तक "राजिया रा सौरठा" से साभार |
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10टिप्पणियाँ

  1. कवि कृपाराम जी रचित यह दोहे कितनी गहन शिक्षा दे जा रहे हैं..वाह!!

    रतन भाई, आपका बहुत आभार एवं साधुवाद इस श्रृंखला को जारी रखने का.

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  2. आज भी मैं समृध्‍द हुआ। शुक्रिया रतनसिंहजी।

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  3. बहुत सुदर और शिक्षाप्रद दोहे हें....इंतजार रहेगा अगली कडी का।

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  4. बहुत लाजवाब सिरीज चल रही है राजिया की. आपको धन्यवाद.

    रामराम.

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  5. bahut hi gyan vardhak bhi hai,sach bahut achhi post hai.aise dohe bahut kum pdhne milte hai aajkal.

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  6. आप हमारे ग्याण मे बढोतरी कर रहे है, धन्यवाद

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  7. इस श्रृंखला को जारी रखने का धन्यवाद।

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  8. शानदार जानकारी !

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  9. kitna aatmik aanand milta ha kavi Kriparamji ke Rajiya ke duhe padh kar. bahut purani chah puri ho rahi hai inko padhane ki. internet se kya paya ja sakta ha iska ahesas gyandarpan.com karva raha ha. Aapka bahut bahut dhanyawad.

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